दिल्ली-पंजाब की हवा ‘खतरे’ में पर चीन का बीजिंग Clean, आखिर चीन ने कैसे जीती प्रदूषण से जंग?
punjabkesari.in Monday, Nov 24, 2025 - 10:02 AM (IST)
जालंधर(अनिल पाहवा): दिल्ली में 22 नवंबर को पी.एम. 2.5 का स्तर 323 तक पहुंच गया, जबकि पंजाब में यह स्तर 225 था। पाकिस्तान के लाहौर में यह 238 रहा। लेकिन हैरानी की बात यह है कि कभी स्मॉग से बदनाम रहा चीन का बड़ा शहर बीजिंग उसी दिन सिर्फ 43 के स्तर के साथ 'क्लीन एयर सिटी' बना हुआ था। आखिर चीन ने ऐसा क्या किया कि उसके यहां पर प्रदूषण का स्तर कम हो गया और बड़ी बात कि उसके यहां के बच्चे जिसे देश का भविष्य कहा जाता है, साफ हवा में सांस लेने लग गए। यह सब एक दिन एक महीना या एक साल में नहीं हुआ, बल्कि समय लगा। लेकिन चीन ने इस पर विजय पा ली। भारत में यह समस्या तेजी से बढ़ रही है और इसका समाधान होना समय की जरूरत है। सब कुछ सरकार के हाथ नहीं, बल्कि आम लोगों को भी इस पर सोचना होगा क्योंकि इस हवा में सांस सिर्फ सरकार या उसके अधिकारी नहीं ले रहे, आप और आपके बच्चे भी ले रहे हैं।
एक समय चीन में ऐसा भी
यह जानना जरूरी है कि 2012 तक चीन के 90 प्रतिशत शहर निर्धारित प्रदूषण मानकों से ऊपर थे। 74 बड़े शहरों में से केवल 8 शहरों में हवा सुरक्षित मानी जाती थी। वायु प्रदूषण के कारण हर साल लगभग 5 लाख लोगों की समय से पहले मौत हो जाती थी। दुनिया भर में चीन की आलोचना होती थी — उसे प्रदूषण की राजधानी कहा जाता था। पांच–छह साल पहले तक चीन में हवा इतनी ज़हरीली हो चुकी थी कि सर्दियों में आसमान दिखना बंद हो जाता था। पूरा देश स्मॉग की चादर में लिपटा रहता था। कई शहरों में तो सूरज महीनों तक दिखाई नहीं देता था, स्कूल बंद करने पड़ते थे और बीजिंग की सड़कों पर हर व्यक्ति मास्क लगाए नजर आता था — बिल्कुल वैसे ही जैसे आज कल दिल्ली और एन.सी.आर. में दिखाई देता है।
कैसे बदली बीजिंग की किस्मत?
2008 के ओलिंपिक से पहले, खुद चीन अपनी हवा को लेकर इतना चिंतित था कि उसने बड़ा कदम उठाया। उसने गाड़ियों पर सख्त रोक, फैक्ट्रियों को अस्थायी रूप से बंद, निर्माण कार्य थाम देने जैसे सख्त कदम उठाए। नतीजा चौंकाने वाला था। एक स्टडी में पाया गया कि ओलंपिक अवधि में बीजिंग की हवा में प्रदूषण 30 प्रतिशत तक घट गया था।
लिए गए सख्त फैसले
इसके कुछ साल बाद 2013 में चीन ने क्लीन एयर एक्शन प्लान लागू किया। इस बार कदम अस्थायी नहीं, बल्कि स्थायी थे—कोयले की खपत में भारी कटौती की गई, मॉनिटरिंग सिस्टम मजबूत किया गया, उद्योगों पर कठोर नियंत्रण और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दिया गया। देखते ही देखते वायु गुणवत्ता में हैरान करने वाला सुधार हुआ और आज बीजिंग कई दक्षिण एशियाई शहरों की तुलना में कहीं बेहतर हवा में सांस ले रहा है। जिस देश ने कभी सूरज को स्मॉग में खो दिया था, वह आज साफ़ हवा में सांस ले रहा है।
नए प्लान में खर्च किए करोड़ों
2013 में चीन ने एक बड़ा फैसला लिया — राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता कार्य योजना (नैशनल एयर क्वालिटी एक्शन प्लान)। सरकार ने इस पर करीब 19 हजार करोड़ रुपए झोंक दिए और इसे ऐसे लागू किया जैसे देश युद्ध लड़ रहा हो। प्रदूषण राजधानी का टैग मिलने के बाद चीन ने समझ लिया कि अगर शहर गाड़ियों से भरते गए, तो हवा कभी साफ़ नहीं होगी। इसलिए वहां के प्रशासन व सरकार ने सड़कों से पुराने और धुआं छोड़ने वाले वाहन हटाए और बीजिंग, शंघाई और गुआंगझोऊ में कारों की संख्या सीमित कर दी गई। नए कोयला आधारित प्लांट्स पर मंजूरी लगभग रोक दी गई। जहां सख्त फैसले लिए वहीं बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण करके ताज़ी हवा के गलियारे बनाए गए तथा इसके साथ लो-कार्बन पार्क विकसित किए गए, जिन्हें कम कार्बन उत्सर्जन वाला क्षेत्र बनाया गया।
उद्योगों पर एक्शन
औद्योगिक प्रदूषण को मुख्य अपराधी मानते हुए सबसे अधिक सख्ती यहीं दिखाई गई। कोयले के उपयोग को आधे से भी कम करने का लक्ष्य रखा गया और कई खदानें बंद कर दीं गईं। 2014 में जब इस संबंध में कदम उठाने शुरू किए गए तो करीब 400 कारखाने बंद कर दिए गए। बीजिंग जैसे शहरों में सरकार ने सोचा कि जनता के लिए यात्रा आसान हो, तो निजी वाहनों पर निर्भरता खुद ही कम हो जाएगी। इसलिए मैट्रो नैटवर्क को तेजी से बढ़ाया गया, चौड़े पैदल मार्ग और साइकिल जोन विकसित किए गए, सार्वजनिक परिवहन को प्राथमिकता दी गई। इस सबसे नतीजा साफ है — सड़कों पर गाड़ियों की भीड़ कम हुई और हवा ने चैन की सांस ली।
घरों पर भी सख्ती
बीजिंग में पांच साल पहले तक 40 लाख से भी अधिक घरों, स्कूलों, अस्पतालों और दफ्तरों में कोयला ईंधन के रूप में इस्तेमाल होता था। सरकार ने एक झटके में इसे बंद कर दिया। लोगों के लिए यह बहुत कठिन था क्योंकि सर्दियों में कोयला ही सहारा था, लेकिन सरकार ने इसके बदले नेचुरल गैस और इलेक्ट्रिक हीटर उपलब्ध कराए। लोगों का गुस्सा भी निकला और असुविधा भी हुई, लेकिन धीरे-धीरे वही कदम शहर की हवा के लिए जीवनदायिनी साबित हुआ।
भारत के लिए बड़ी चुनौती
भारत को चीन की तरह कुछ सख्त कदम उठाने होंगे। इसके लिए नैशनल क्लीन एयर इमरजेंसी प्लान बना कर प्रदूषण को राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया जाना होगा। एक स्वतंत्र नैशनल क्लीन एयर अथॉरिटी बने, जो राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर काम करे। हर राज्य के लिए क्लीन एयर टार्गेट– जैसे 5 साल में पी.एम. 2.5 में 40–50 प्रतिशत कमी का लक्ष्य रखा जाए। प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड जैसे विभाग जहां कोई काम नहीं हो रहा, की जवाबदेही तय की जानी होगी। इसके लिए देशव्यापी रियल टाइम मॉनिटरिंग नैटवर्क बनाया जा सकता है जिसके साथ हर शहर, बड़े गांव, इंडस्ट्रियल ज़ोन में रियल टाइम एयर मॉनिटरिंग स्टेशन स्थापित हो सकें। इसके अलावा सौर, पवन, हाइड्रो, बायोमास, इलैक्ट्रिक बसें, ई-व्हीकल्ज़ को बढ़ावा देने के लिए नीति पर काम होना चाहिए। बड़े शहरों में कार रजिस्ट्रेशन पर अतिरिक्त ग्रीन सेस व पार्किंग महंगी करने के साथ-साथ किसानों के लिए स्टबल मैनेजमेंट मशीनों पर 80–90 प्रतिशत सब्सिडी, पराली से बायो-सी.एन.जी., बायो कोयला, पराली जलाने पर सिर्फ जुर्माना नहीं बल्कि पराली न जलाने वालों को अवार्ड या पुरस्कार देकर उन्हें उत्साहित किया जा सकता है, जिसका असर अन्य किसानों पर भी होगा। इसके अलावा पब्लिक ट्रांसपोर्ट को उत्साहित करने की तरफ कदम बढ़ाने होंगे। और मुख्य बात यह कि जो भी योजना बने, उस पर सख्ती से अमल हो, न कि सरकारी कागजों या अखबारों में फोटो और खबरों तक सीमित हो।

